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दशरथ का तीनों रानियों सहित यज्ञ


दशरथ  : {मन ही मन} मन्त्री जी को गए बहुत दिन व्यतीत हुए परन्तु अभी तक लौटकर नहीं आए और न कुछ खबर ही भेजी । कुछ समझ में नहीं आता कि क्या कारण है । मालूम नहीं शृङ्गि ऋषि मिलें या नहीं, यदि मिल भी गए हों तो उन्होंने आना स्वीकार भी किया है या नहीं, वास्तव में मुझे ही जाना चाहिए था, मैंने भूल की जो स्वयं नहीं गया । 

द्वारपाल : महाराज प्रणाम । 

        महाराज मंत्री जी तशरीफ ला रहे हैं, 

        शृङ्गि ऋषि जी संग में रौनक बढ़ा रहे हैं । 

        ड्योढ़ी पे छोड़ उनको हाजिर यहाँ हुआ हूं, 

        जो हुक्म हो तो कह दूं अन्दर बुला रहे हैं । 

महाराज मन्त्री जी शृङ्गि ऋषि के सहित द्वार पर पधारे हैं । दास को खबर देने यहां भेजा है आज्ञा हो तो उन्हें बुला लाऊँ । 

दशरथ  : क्या शृङ्गि ऋषि जी पधारे हैं ? 

द्वारपाल : हां महाराज द्वार पर विराजमान हैं । 

दशरथ  : बहुत अच्छा ! मैं स्वयं उनके स्वागत के लिए चलता हूं । 

वशिष्ठ : राजन, मैं भी शृङ्गि ऋषि जी के स्वागत के लिए चलता हूं । 

दशरथ  : बहुत अच्छा, आप भी चलिए ।  

दशरथ  : ऋषिराज प्रणाम । 

शृङ्गि ऋषि - क्यों इतनी तकलीफ की, क्या है असल मुराद । 

                   किस कारण मुझको किया, राजन तुमने याद । 

दशरथ - बहुत दिनों से ऋषि जी, लगी हुई थी आस । 

              दर्शन करके आपके, मिटा सकल दुख त्रास ॥ 

शृङ्गि ऋषि : राजन ! कहो क्या कारण है जो मुझको याद किया ? आपका असली तात्पर्य क्या है ? शीघ्र बताइए ? 

दशरथ : ऋषिवर ! दशरथ बहुत दुखी और लाचार हैं, बल्कि जिन्दगी से हताश हैं चारों तरफ से निराशा ही निराशा छाई है । केवल आपके दर्शनों से मुझे कुछ धीर बंधी है, भाग्य ने मुझे दुःख दिया है । ऋषिवर अब हो सकता है तो कुछ उपाय कीजिए वरना अपने ही हाथों से मुझे सन्यास दे दीजिए । दशरथ सब कुछ छोड़ने को तैयार है केवल आपकी आज्ञा का इन्तजार है। 

शृङ्गि ऋषि :"यों न आहें भरो धीर मन में धरो, यज्ञ पूर्ण मैं राजन तुम्हारा करूं । 

                  यज्ञ में जो हमारे मददगार हों, वेदपाठी हों पण्डित होशियार हों । 

                  वह विधि से यत्न अपना अपना करें, जैसा-जैसा मैं उनसे इशारा करूं । 

                  एक तरफ वेदवाणी से गूंजे गगन, एक तरफ हो हवन से सुगंधित पवन । 

                  आगे जो कुछ प्रारब्ध होवे तेरी, जो है अपना यतन आज सारा करूं । 

राजन ! अब आप यज्ञशाला में चलिए और पुत्रेष्ठि यज्ञ सामग्री लाइए । 

सुमन्त : महाराज सामग्री तैयार है । 

शृङ्गि ऋषि : चलिए , हमें भी अब क्या इन्तजार है ।  

( दशरथ का तीनों रानियों सहित यज्ञ में भाग लेना । यज्ञ हवन होना तथा रानियों को प्रसाद बांटना ) 

बांदी :  ऐ राजन आपका दरबार सुहाना हो मुबारक हो । 

            मैं लाई हूं ये खुशखबरी आशा थी जिसकी मुद्दत से । 

            दयालु की दया का आज हो जाना मुबारक हो । ऐ राजन.......  

            कुंवर पैदा हुए हैं आपके महलों में ऐ राजन । मुबारक हो.......  

महाराज बधाई है । महलों में कुंवर पैदा हुए हैं । 

दशरथ :{स्वयं} हे ईश्वर तुम धन्य हो, तुम्हारी लीला कौन जान सकता है । प्रभो ! ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसने तुम्हारा आश्रय न लिया हो और आपने उसकी मनोकामना पूर्ण न की हो {मन्त्री से} अच्छा मैं महलों में जाता हूं और सबको यह शुभ समाचार सुनाता हूं । इसी प्रसन्नता में घर-घर मंगलाचरण हो और एक सप्ताह तक सभी कार्यालय बन्द हों, मन्त्री जी इसी समय आज्ञा कर दी जाय कि आज तमाम शहर में रोशनी कर दी जाय और जितने भी कारागार में कैदी हैं उन सबको छोड़ दिया जाय । यह कार्य आपको सौंप दिया जाता है तथा वांदी को मुंह मांगा इनाम दिया जाय । {वशिष्ठ से} गुरु जी आप भी रानिवास तक चलने का कष्ट कर तथा राजकुमारों का नामकरण करने का कष्ट करें ।

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