
(रावण कुम्भकरण, विभीषण तपस्या में लीन हैं, रावण एक पांव के सहारे खड़ा तथा कुम्भकरण व विभीषण आंख मूंदकर तपस्या में लीन है)
(ब्रह्मा का प्रवेश)

ब्रह्मा : (रावण के निकट जाकर) लंकेश ! मैं तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हूँ । कहो क्या वर मांगना चाहते हो ?
रावण : हम काहू कर मरहि न मारे । बानर जात मनुज दोउ वारे ।
देव दनुज किन्नर अरु नागा । सबको हम जीतहीं भय त्यागा ।
हे देव ! यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं, तो यह वर दीजिए कि मैं देवता, राक्षस, किन्नर और नाग सबको निर्भय होकर जीतूं ।
ब्रह्मा : एवमस्तु तुम बड़ तप कीन्हा, जो वर मांगहु सो वर दीन्हा । (ब्रह्मा कुम्भकरण के पास जाकर मन ही मन कहते है ।) यदि यह हमेशा इसी प्रकार आहार करता रहा तो सारा संसार थोड़े ही दिनों में नष्ट हो जाएगा, इसलिए इसकी बुद्धि पहले ही हर लेनी चाहिए । (प्रकट होकर) पुत्र ! मैं तुम्हारी कठिन तपस्या से अति प्रसन्न हूँ, कहो क्या वर चाहते हो ।
कुम्भकरण : सुनहु नाथ यह विनय हमारी, मो को है अति निद्रा प्यारी ।
दीजो यह वर दीन दयाला, सोऊ मैं छः मास कृपाला ।।
हे नाथ यदि आप मेरी तपस्या पर प्रसन्न है तो मुझे यह वर दीजिए कि मैं छः मास तक सोता रहूँ ।
ब्रह्मा : एवमस्तु । ऐसा ही होगा ।
ब्रह्मा : (ब्रह्मा विभीषण के पास जाकर) पुत्र ! मैं तुम्हारो तपस्या से अति प्रसन्न हूं । कहो क्या वर माँगना चाहुते हो ?
विभीषण : जो प्रसन्न प्रभु मोहि पर, दीजो यह वरदान ।
जन्म-जन्म हरिभक्ति में, सदा रहे मम ध्यान।।
भगवान ! यदि आप मेरी तुच्छ तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि मेरा समस्त जीवन ईश्वर की उपासना में व्यतीत हो ।
ब्रह्मा : तथास्तु । ऐसा ही होगा ।
(पट परिवर्तन। नारद का प्रवेश)

भजमन मूर्ख नाम हरि को, को उसके तुल्य है जग माही ।
वही दाता है जानकी जी को , भजमन मूर्ख नाम हरि को ।
वृधा गंवाई खेल अवस्था, काम न कीजो देहधरी को । भजमन ।।
रावण : ऋषिराज प्रणाम ! कहिए ऋषिराज कैसे आना हुआ !
नारद : आयुष्मान ! कहो लंकेश परिवार सहित कुशल से तो हो । बहुत दिनों से आपकी कुशलता न मिली इसी हेतु आया हू ।
रावण : कृपा तुम्हारी सुनहु ऋषिराया, तुमहीं प्रताप राज हम पाया ।
देव दनुज किन्नर अरु नागा, जीतहुं सबहि सकल भय त्यागा ।।
ऋषिराज आपकी ही कृपा से मैंने यह राज्य प्राप्त किया है और ब्रह्मा जी से यह वर प्राप्त किया है कि देव, दनुज किन्नरऔर नाग सबको मैं निर्भय होकर जीतूं । इसलिए अब मुझे किसी का भय नहीं ।
नारद : वर पायहु जब होत बड़ाई, कछुकह चमत्कार दिखलाई ।
सब देखें तत्काल तमासा । शम्भु सहितउठायो कैलाशा ।।
लंकेश । यदि ऐसा है तो कोई चमत्कार दिखाओ और एक बार शम्भु सहित कैलाश उठाकर लंका में ले आओ । जिससे तुम्हारी कीर्ति संसार में फैल जाएगी ।

रावण : सत्य कहा नारद ब्रह्म ज्ञानी, भुजबल मोर सकल सब जानी ।
अभी जाऊ कैलाश उठाऊं, शम्भु सहित लंका लेहि आऊ ।।
अच्छा मैं अभी जाता हूँ और शम्भु सहित कैलाश पर्वत लंका में ले आता हूँ ।
नारद :आग तो लगा दी , अब तमाशा देखना ही बाको रहा । नारायण-नारायण-नारायण ....
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