
मंत्रो : महाराज आप चिंतित जान पड़ते हैं । कृपया मुझे भी कुछ ज्ञात हो ।
दशरथ : दुखी यों हो रहा मन्त्री मुझे यह शोक भारी है ।
कहूं क्या ऐ सखा तुम से, दशा जैसी हमारी है ।
अवस्था आ गई चोथी, नहीं संतान देखी है ।
नहीं कुछ होने की आशा, व्यथा यह मोपे भारी है । दुखी यों.....
दशरथ : मन्त्री जी अब मेरी चौथी अवस्था आ गई है किन्तु अभी तक कोई संतान न हुई । राज्य भार किसके ऊपर छोड़ यही चिन्ता मेरे मन में व्याप्त है ।
मन्त्री : महाराज ! आप जैसे धैर्यशालो और प्रतापी राजा को इस प्रकार व्याकुल होना शोभा नहीं देता । अपने कुल पूज्य गुरु वशिष्ठ जी को बुलाकर उनकी सम्मति ले लीजिए ।
दशरथ : अच्छा मन्त्री जी शीघ्र ही गुरु वशिष्ट जी को बुलाइए ।
मन्त्री : जो आज्ञा महाराज । द्वारपाल, द्वारपाल ।
द्वारपाल : जी महाराज ।
मन्त्री : गुरु वशिष्ट जी को बुला लाइए ।
द्वारपाल : जो आज्ञा महाराज
( वशिष्ठ का प्रवेश, "दशरथ का प्रणाम करना" )

वशिष्ठ : बता दो मुझको भी तो ऐ राजन तुम्हारे दिल में मलाल क्या है ।
हुआ ए चेहरा उदास क्यों है, कहो तबीयत का हाल क्या है ।
तुम्हारी यह देखकर के हालत हुए हैं छोटे बड़े निराशा ।
तुम्हारे दिल पे एकाएक ऐसा, बताओ आया स्याल क्या है । बता दो मुझको.........
राजन आपकी यह हालत देखकर तमाम राज्य सभा का दिल बैठा जाता है । हर एक अपने विचार के घोड़े दौड़ा रहे हैं । महाराज ! कहिए कि आपके चेहरे पर यह उतार चढ़ाव का क्या कारण है । कृपा करके शीघ्र बताने का कष्ट कीजिए ।
दशरथ : क्या कहूं ऐ गुरुजी मैं अपनी व्यथा,
मुझको औलाद का गम सताता रहा ।
हर तरह से हुई ना उम्मीदी मुझे,
अब जमाना जवानी का जाता रहा ।
जो जवानी थी ढल ढल कै जानै लगी,
अब अवस्था बुढ़ापे की आने लगी ।
यदि हो जाता घर में मेरे एक पुत्र,
तो उजड़ता नहीं मेरा आबाद घर । क्या कहूं......
गुरुजी यों तो हर प्रकार ईश्वर की कृपा है परन्तु यही एक चिंता मेरे मन में व्याप्त है । अब आयु का अन्तिम भाग भी व्यतीत होने जा रहा है परन्तु अभी तक मैं अपनी असली दौलत से खाली रहा । यदि एक भी पुत्र हो जाता तो मेरा हृदय शीतल हो जाता, परन्तु किसी ने सच कहा है -
"चांद चढ़े सूरज भए, दीपक जले हजार ।
जिस घर में बालक नहीं, वह घर निपट अंधियार ॥"
शोक ! अब इस विशाल राज्य के गैर ही अधिकारी होंगे । हे ईश्वर ! तेरी लीला अपरम्पार है ।
वशिष्ठ : महाराज सचमुच आपकी यह चिन्ता उचित है । वह घर नहीं बल्कि एक तरह का शमशान है जिसमें कोई बालक खेलता हुआ दिखाई न देता हो । सन्तान जीवन का सहारा और आंखों का तारा है, किन्तु इस प्रकार निराश नहीं होना चाहिए । उस दयालु को दया करते देर नहीं लगती । अब शीघ्र ही जाकर शृङ्गी ऋषि जी को बुलाइए और पुत्रेष्ठ यज्ञ की तैयारी कीजिए । मुझे पूर्ण आशा है कि ईश्वर आपकी मनोकामना पूर्ण करेगा ।
समस्त : महाराज गुरु जी का कहना सत्य है । अब शीघ्र ही यज्ञ का प्रबंध करना चाहिए ।
दशरथ : मन्त्री जी आप जाइए और जिस तरह भी हो सके शृङ्गि ऋिषि को बुला कर लाइए, आशा है ऋषिराज पधार कर मुझे कृतार्थ करेंगे और मेरे क्लेश को मिटा देंगे ।
सुमन्त : महाराज की आज्ञा शिरोधार्य है । {सुमन्त का प्रस्थान}
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