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माता सीता और भगवान राम का जन्म


वशिष्ठ : चलिए राजन । 

"स्थान रनिवास" ( दशरथ तथा वशिष्ठ ) 

दशरथ : गुरुजी राजकुमारों का नामकरण संस्कार कीजिए ।

वशिष्ठ - सुनहु नृप तुम हो बड़भागी, जागे सब सुत सुर हित लागी । 

             कौशल्या गृह भयो कुमारा, प्रथम नाम रखा राम उदारा । 

             केकई सुत जन्म जो लीना, नाम भरत ताको रख दीना । 

             परम पुत्र सुमित्रा जाए, नाम लखन रिपु शत्रुधन पाये । 

राजन ! कौशल्या नन्दन का नाम रामचन्द्र, रानी सुमित्रा के पुत्रों का नाम लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न और केकई के पुत्र का नाम भरत रखा जाता है । 

दशरथ : जो आज्ञा महाराज ।  । 

"जनक दरबार" ( जनक के मन्त्री सभासद आदि बैठे हैं । ) 

जनक : मन्त्री जी प्रजा का क्या हाल है । 

मन्त्री : महाराज ! क्या कहूं । कहा भी नहीं जाता और बिना कहे रहा भी नहीं जाता । वर्षा न होने से प्रजा में हाहाकार मचा हुआ है । 

जनक : मन्त्री जी इसका उपाय शीघ्र होना चाहिए । 

मन्त्री : महाराज ज्योतिषियों का कहना है कि यदि महाराज स्वयं हल चलाएं तो पूर्ण विश्वास है कि प्रजा के सब दुख दूर हो जाएंगे और अवश्य वर्षा होगी । 

जनक : यदि ऐसा है तो मैं स्वयं हल चलाने के लिए तैयार हूँ, मन्त्री जी जाइए और शीघ्र ही हल चलाने का प्रबन्ध कीजिए । 

मन्त्री : जो आज्ञा महाराज ! 

( मन्त्री का हल तैयार करना, जनक का हल चलाना तथा हल की सीमा से घड़े का उत्पन्न होना  राजा जनक का घड़े को देखना तथा एक कन्या का जन्म लेना, जनक का कन्या को उठाकर राजमहल में ले जाना और सुनैना की गोद में देना । )

नारद : नारायण नारायण नारायण । 

जनक : देवऋषि मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए । 

नारद : कल्याण हो राजन, सुखी रहो, अहोभाग्य है जो आपके घर जगत माता का आगमन हुआ । 

जनक : ऋषिराज शुभ अवसर पर पधार कर आपने मेरे ऊपर बड़ी कृपा की, अब मेरी पुत्री का नामकरण संस्कार करने की महान कृपा करें । 

नारद : नारायण-नारायण-नारायण , राजन इनका नाम तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने से पूर्व ही रख दिया था, परन्तु इस जन्म में यह सीता के नाम से प्रसिद्ध होंगी तथा संसार में आपका नाम उज्ज्वल करेंगी । इस कन्या के द्वारा आपको अनेकों मुसीबतों को भी झेलना पड़ेगा किन्तु साथ ही साक्षात नारायण आपकी कन्या के पति बनेंगे, नारायण-नारायण-नारायण । 

नारद - जगदीश जगदाधार को हरदम भजो हरदम भजो, 

            आमो जगत उद्धार को हरदम भजो हरदम भजो । 

            नारायण-नारायण-नारायण..........  

( जंगल का दृश्य ) 

राक्षसों :अजब ये वन सुहाना है आहा हा हो हो हो हो हो । 

              यहाँ खाना कमाना है अहा हा हो..........अजब यह वन.......... 

              यहां अच्छा ठिकाना है अहा हा हो........ 

              यहां जो कोई आयेगा न जीवित जाने पावेगा । 

              न फिर यह समय आयेगा आहा हा हो हो हो हो हो । 

मारीच : अरे नालायको कुछ आगे-पीछे का भी ध्यान है या सारा दिन खेल-कूद में ही बिताओगे, वह देखो सामने से शिकार निकला जा रहा है और तुम्हें कुछ खबर नहीं । 

पहला राक्षस : क्या कहा शराब, {प्याला आगे करके} पहिले थोड़ा इसमें डाल दो ताकि मेरा नशा और खिल जाय । 

दूसरा राक्षस : {घुसा मार कर} हट ! तेरा हो सत्यानाश, बार-बार हमसे जादा हिस्सा लेता है और शिकायत भी करता है । 

मारीच : अरे तुम्हारा सर्वनाश हो, कुछ मेरी भी सुनते हो या शराब का दौर ही लगाते हो । 

तीसरा राक्षस : हा हा हा, कहिए क्या बात है मालिक ? 

मारीच : सुनते हो या मार खाते हो । 

पहला राक्षस : तो कुछ बात भी बताइए न । 

मारीच : अरे ! ओ अन्धो वह देखो सामने से शिकार निकला जा रहा है ।

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