सब राक्षस उछलकर-अरे.... रे... रे... शिकार बस हो जाओ तैयार ।
सुबाहु : खबरदार ऐसी होशियारी से हमला करना कि किसी को भागने का मौका न मिले ।
मारीच : हर एक अपनी-अपनी जगह में तैयार रहें और मौके का इन्तजार करें । ( सब राक्षसों का वन में छिप जाना और यात्रियों का आना )
पहला यात्री : {अपने साथियों से} अरे यहां तो डाकू रहते हैं । देखो आखिर मेरा विचार सही होगा ।
मारीच : {एक यात्री की गरदन पकड़कर} रख दो जो कुछ तुम्हारे पास है ।
एक यात्री : ऐ महाराज दशरथ तेरी दुहाई है दुहाई, हाय ! हम गरीब तेरे राज्य में लुटे जा रहे हैं ।
दूसरा यात्री : भाई हमारी दशा पर कुछ तरस तो खाओ ।
सुबाहु : हट ! हम ऐसी सड़ी-गली चीज नहीं खाते । लातों के भूत बातों से नहीं मानते, रख दो जो कुछ तुम्हारे पास है ।
सब राक्षस : हां हां बिल्कुल ठीक है ।
( सब यात्री अपनी-अपनी पूंजो निकालकर उनके हवाले कर देते हैं और आगे चल पड़ते हैं । )

सभी राक्षस सम्मिलित होकर गाना गाते है,
हम तो आनन्द अपना मनाएंगे ।
पहला राक्षस : पीयेंगे यहाँ बैठ के प्याले शराब के, अर भून-भून खायेंगे टुकड़े कबाब के सबको उल्लू में उल्लू बनायेंगे । हम तो आनन्द....
दूसरा राक्षस : जब तक कि मेरे हाथ में तीर कमान है, सारे जमाने की मेरी मुट्ठी में जान है, हम तो आनन्द.....
तीसरा राक्षस : राजा के राज्य का न हमें कुछ ख्याल है, आवे मुकाबले पर किसकी मिजाल है, टुकड़े एक-एक के दो-दो बनाएंगे, हम तो आनन्द....
मारीच : शाबाश मेरे बहादुरो, खूब कार्य किया, अब मौज उडाओ और बेफिक्री से प्याले चढ़ाओ ।
पहला राक्षस : देखो उस्ताद जी कैसा निशाना लगाया ।
दूसरा राक्षस : और क्या मैंने कम जोर लगाया ।
तीसरा राक्षस : हा-हा-हां और मेरी फुर्ती कैसी ।
चौथा राक्षस : तेरी ऐसी की तैसी ।
मारीच : अब इन फजूल की बातों को छोड़ो । चलो अब जंगल की सैर करें, शायद और कोई शिकार हाथ लग जाय ।{सबका प्रस्थान}
( विश्वामित्र का तपस्या करते हुए )

पहला राक्षस : अरे यह कैसा तमाशा है, बुड्ढा पागल बनकर घी को आग में जला रहा है ।
दूसरा राक्षस : सचमुच दीवाना मालूम होता है ।
तीसरा राक्षस : ठीक है यारो बनी-बनाई आग मिल गई, मांस भून-भून कर खाएंगे । {एक राक्षस विश्वामित्र के पास जाकर}
चौथा राक्षस : अरे एक प्याला इस बुड्ढे को भी दे दो, यह भी सुकून ले लेगा ।
दूसरा राक्षस : ले बुड्डे तू भी पीले शराब, जप-तप तो पीछे होगा ।
तीसरा राक्षस : तेरा खाना हो खराब, कुछ तो दे मुंह से जवाब । {विश्वामित्र चुप रहते हैं ।}
चौथा राक्षस : अरे ! यह न बोलता है और न ही आंखें खोलता है, न जाने मन ही मन में क्या विष घोलता है ।
दूसरा राक्षस : बस बस , हमें भी क्या चाहिए, बनी-बनाई आग मिल गई अब मांस भून-भूनकर खाएंगे ।
( सब राक्षसों का यज्ञ भंग करना, विश्वामित्र का क्रोध से बोलना )

विश्वामित्र : अरे दुष्टो ! यहां तुमको तुम्हारी मौत लाई है ।
कजा ने मारकर थप्पड़ किया तुमको सौदाई है ।
मसल मशहूर हो जाये अगर चूंटी के पर बेड़ा ।
तो निश्चय ही समझ लीजो कजा अब उसकी आई है ।
अगर है युद्ध की इच्छा किसी राजा को जा ढूंढो ।
फकीरों से झगड़ने में कहां की वीरताई है । अरे दुष्टो...
अरे दुष्टो मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुमने मेरा बना-बनाया यज्ञ बिगाड़ डाला, मालूम होता है कि तुम्हारी मृत्यु निकट है । चीटियों का जब मरने का समय आता है तो उन पर पंख लग जाते हैं । दौलत की इच्छा है तो किसी साहूकार के पास जाओ, राज्य की इच्छा है तो किसी राजा से लड़ो । हम फकीरों के पास रखा ही क्या है । अच्छा अब मैं तुम्हारी मौत का सामान लेकर आता हूं ।
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