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राम और ताडिका का युद्ध


वशिष्ठ  : {विश्वामित्र से} मुनि जी धैर्य धारण कीजिए । {मन ही मन} इधर राजा, उधर सन्यासी, किसकी तरफ कहा जाव । यदि राम और लक्ष्मण को भेजने से रोकूं तो सन्यासी रुष्ट होकर जाते हैं । {कुछ सोचकर} कुछ भी हो राजा को ही समझाना उचित है ।

वशिष्ठ  : ऐ राजन आपका इस बात में इनकार नाहक है । 

              मुनी जी रास्ते पर हैं तेरा इनकार नाहक है । 

              मुनासिब तो यही है, भेज दो दोनों कुमारों को । 

              नहीं तो आपकी मर्जी, मेरी गुफ्तार नाहक है । 

राजन ! निःसंकोच होकर राम और लक्ष्मण को ऋषि जी के साथ भेज दीजिए । 

दशरथ : हे परमात्मा ! तू ही रक्षक है । अच्छा गुरु जी जैसी आपकी इच्छा है । आपको पूर्ण अधिकार है । मन्त्री जी आप राम और लक्ष्मण को बुला लाइये । 

मन्त्री : जो आज्ञा महाराज । 

( राम और लक्ष्मण का मन्त्री के साथ आते हैं और सबको प्रणाम करते हैं )  

दशरथ : गुरुजी की सिखावन सुनना, हां ऋषिजी की सिखावन सुनना । 

              तुम लड़ना, तुम भिड़ना, गौ विप्रों की रक्षा करना । गुरु की....  

              काम बने जब आपका, दीजो जल्द लौटाय । 

              जैसे इनको ले चले, तैसे दियो पहुंचाय । गुरु जी की ... 

( दशरथ का राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के पास सौंपना तथा राम और लक्ष्मण का सबको प्रणाम करके विश्वामित्र जी के साथ चले गए ) 

"जंगल का दृश्य" ( विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण )

राम : मुनि जी यह कौन-सा स्थान है ? 

विश्वामित्र : बेटा ! मारीच और सुबाहु की माता ताड़िका इसी जंगल में निवास करती है । 

राम : क्या वह भी अपने बेटों की तरह बदकार है ?

विश्वामित्र : हां ! बेटा वह बड़ी जालिम और मक्कार है, वह देखो सामने से चली आ रही है । 

राम : चलो मुनि जी आगे चलें ।

विश्वामित्र : नहीं-नहीं बेटा पहले इसकी मिट्टी ठिकाने लगाओ । 

राम : लेकिन मुनि जी स्त्री पर शस्त्र उठाना तो पाप है । 

विश्वामित्र : बेटा ! जो स्त्री शस्त्र धारण करती है उसको मारने में कोई पाप नहीं है । वह देखो वह आ गई है । 

ताड़िका : हा हा हा 

ताड़िका : रे नृप बालक काल गरसाये, क्यों तुम सनमुख मेरे आये । 

               जिनके आये करन सहाई, ते डरपोक विप्र मुनिराई । 

ताडिका : अरे ! ओ राजा के छोकरो क्यों तुम्हारे सिर पर मौत सवार है जो तुम यहाँ आए हो । जिसकी सहायता करने आये हो वह तो बड़ा कायर है । 

राम : अरी दुष्टा पापिन जड़ नारी, नहीं जाने हम हैं धनुधारी । 

         देख तुझे यमपुरी पहुंचाऊं, एक ही बाण से प्राण छुड़ाऊं । 

अरी दुष्टा तुझे मालूम नहीं कि हम रघुवंशी हैं, दुष्टों को मारने के लिए धनुष-बाण धारण करते हैं । तुझे तो मैं एक ही बाण से यमलोक पहुंचा दूंगा । 

ताडिका : मैं ताडिका तड़ाक तड़ तड़ ताड़ करती हूं । 

                तुम सरीखे पुरुषों का आहार करती हूं । 

                जो सामने आ जाये मेरे जीता ना छोडूं । 

                सौ-सौ को मुंह में डाल गर्म दाड़ करती हूं । मैं ताडिका 

राम : अरी बदकार होशियार हो जा । 

ताडिका : और तू भी मरने के लिए तैयार हो जा । 

( दोनों का युद्ध करते हैं, ताड़िका घायल होकर जमीन पर गिरती है ) 

ताड़िका : हाय ! हाय ! मैं मर गई । 

लक्ष्मरण : बस एक ही बाण से लम्बी पड़ गई । 

ताड़िका : हाय रे दर्द के मारे मेरा दम निकला जा रहा है । 

राम : तुझको तेरी करनी का फल मिल रहा है । 

ताडिका : खैर कुछ चिन्ता नहीं । मेरे पुत्र तुम्हें खाक में मिला देंगे । 

लक्ष्मण : अगर वे भी मिल गये तो उन्हें भी जल्द तेरे पास पहुंचा देंगे ।   

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