"पितृ भक्त श्रवण कुमार "
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दशरथ : मन्त्री जी कहिए , समस्त प्रजा में सर्व प्रकार से शांति तथा सुव्यवस्था तो है ।
मंत्री : नरेन्द्र की जय हो । प्रजा के हृदय पर सुख शान्ति तथा आपकी सुव्यवस्था का एकछत्र राज्य है ।
(नैपथ्य से श्रवण कुमार की जय । पित्र भक्त श्रवण कुमार को जय - जय होना, तथा द्वारपाल का प्रवेश )

द्वारपाल : महाराजाधिराज कौशल नरेश की जय ।
दशरथ : कहो द्वारपाल क्या श्रवण कुमार आ रहा है ?
द्वारपाल : हाँ राजन ! श्रवण कुमार आपके दर्शन हेतु आया है , यदि आज्ञा हो तो उन्हें ले आऊँ ।
दशरथ : अवश्य । मैं ऐसे पितृभक्तों को देखकर बड़ी प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ ।
( द्वारपाल के साथ श्रवण का प्रवेश कर प्रणाम करना )
दशरथ : कहो श्रवण , आपके माता - पिता तो कुशल से हैं न ?
श्रवण : महाराज की राजधानी में हमें क्या कष्ट हो सकता है । महाराज किन्तु ?
दशरथ : हाँ , हाँ कहो । जो कहना हो निःसंकोच कहो ।
श्रवण : देव , मेरे माता तथा पिता जी तीर्थाटन हेतु कह रहे हैं । इस हेतु अपकी आज्ञा चाहता हूँ ।
दशरथ : मुझे खुशी है, तुम्हें रथ, हाथी, घोड़े, पालकी तथा जितने धन की आवश्यकता हो, सो ले जा सकते हो । तुम जैसे माता - पिता सेवक को मैं अपना यह राज्य मुकुट भेंट करने से संकोच नहीं करूंगा ।
श्रवण : मैं धन्य हो गया राजन ! केवल आप तीर्थाटन की आज्ञा देकर मुझे कृतार्थ कीजिए । अन्य वस्तुओं की जब आवश्यकता होगी तो सेवक अवश्य आकर प्रार्थना करेगा ।
दशरथ : अच्छा श्रवण जाओ सूर्यदेव आपकी यात्रा को सफल बनाएं ।
( भवण का प्रणाम करना तथा नेपथ्य मैं श्रवण की जय - जयकार होना )
दशरथ : मंत्री जी आज मृगों द्वारा मनोरंजन की तीब्र इच्छा हो रही है ।
मंत्री : अति उत्तम विचार है महाराज । हम सब आपकी सम्मति से सहमत हैं ।
दशरथ : अति उत्तम, यदि आप सभासदों की यही राय है तो सेनापति जी आप आवश्यक चीजों का शीघ्रातिशीघ्र प्रबन्ध कीजिए ।
सेनापति : आपकी आज्ञा शिरोधार्य है । [ प्रस्थान ]
श्रवण : अच्छा आज की सभा यहीं पर विसर्जित की जाय ।
मंत्री : जो आज्ञा महाराज ।
( दृश्य जंगल, शान्तनु, ज्ञानवती तथा श्रवण बैठे हैं )

शान्तनु : बेटा श्रवण सूर्य के प्रखर ताप ने हमारे कंठ सुखा दिए हैं । क्या कोई जलाशय समीप होगा ।
श्रवण : अभी जाता हूँ पिता जी आप चिंता न करें । मैं अभी जल की तलाश करता हूं और आपके लिए शीघ्र जल लेकर आता हूँ ।
ज्ञानवती : बेटा श्रवण जल्दी ही जल लेकर आना ।
श्रवण : जो आज्ञा माता जी । आप चिंता न करें ।
( दशरथ का सेनापति के साथ शिकार खेलते हुए )
दशरथ : सेनापति जी मृग तृष्णा का यही समय है हमें सतर्क रहना चाहिए । ताकि शिकार भाग न जाय ।
सत्यकीर्ति : अति उत्तम है महाराज ( ध्यान से कान लगाकर ) महाराज सुनिए, इस ओर से कोई शब्द सुनाई दे रहा है ।
दशरथ : हाँ सेनापति जी हमें इसी ओर चलना चाहिए ।
सत्यकीर्ति : महाराज ! चलिए तथा धनुष बाण सम्भाल लीजिए ।
( राजा दशरथ बाण उसी ओर चलाते हैं बाण श्रवण की छाती पर लगता है ।)
श्रवण : आह ! वाह ! आह ! किस दुष्ट ने छिपकर बाण मेरे सीने में मारा है हाय मेरे अन्धे - पिता माता का सहारा छीन लिया । हाय माता जी बाह ! वाह ! पिता जी आपका श्रवण अपको पानी न पिला सका । ओ पापी तू कौन है ।
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